फिक्र – A Poem on our Common Insecurities
क्या कोई ख्याल तुम्हारा नहीं ? कोई तो होगा ! कोई डर – कोई शर्म …जो मिल्कियत हो बस तुम्हारी ! या तेरे सारे डर .. तुम्हारी सारी फिक्रें…. बस उधार के ही हैं ? वो बीज देते हैं ( अपनी ) फिक्र के तुमको , तुम सींच के बरगद कर देते हो . अपनी बेफ़िक्री कि छाँव में.. […]
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